Saturday, February 28, 2009

ख्वाजा मेरे ख्वाजा…[संत-9]

इस श्रंखला की पिछली कड़ीमदरसे में बैठा मदारी…[संत-8]

glad_071508_chisti2 चिश्ती सूफी पंथ की विशेषताओं में पवित्र सादा जीवन, धर्म को लेकर उदार दृष्टिकोण, नामोच्चार अर्थात जप आदि बातें खास हैं।
सू फी संतों के कई वर्ग-उपवर्ग हैं इनमें चिश्तिया और इस्माइली भी हैंअजमेर के प्रसिद्ध सूफी ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का नाम सबसे प्रसिद्ध है। अजमेर को उनके रुतबे के चलते ही ख्वाजा की नगरी कहा जाता है। ख्वाजा नामधारी कई मशहूर हस्तियां हुई हैं। आमतौर पर सूफी संतों के नाम के आगे तो यह जरूरी विशेषणौं की तरह लगाया जाता है। सम्मान, आदर, रुतबा, वरिष्ठ जैसे भाव इस शब्द में अंतर्निहित हैं।
ख्वाजा को अरबी भाषा का समझा जाता है पर मूल रूप से यह फारसी भाषा का शब्द है जिसमें महत्व का भाव समाया है। ख्वाजा khwaja  का मतलब होता है रईस, धनवान, गुरु, ज्ञानी, शक्तिशाली, कारोबारी, स्वामी अथवा दुखहर्ता। यह बना है ख्व khw धातु से जिसमें इच्छा, आकांक्षा या मनोकामना का भाव है। जाहिर है कि अधिकार-प्रभुत्व सम्पन्न व्यक्ति में ही ऐसी क्षमताएं होती हैं जो इच्छापूर्ति कर सके। आध्यात्मिक पुरुष के तौर पर उस व्यक्ति के आगे हर उस संत के आगे ख्वाजा शब्द लगाया जा सकता है जिसमें मनोकामनापूर्ति की शक्ति हो। प्रभावी व्यक्ति के तौर पर मध्यएशिया के तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, अजरबैजान आदि मुल्कों में ख्वाजा की उपाधि अधिकार सम्पन्न व्यक्ति को दी जाती रही है। अरबी में इसका उच्चारण ख्वाजाह होता है और ईरानी में खाजे। भारत, पाकिस्तान, ईरान में एक बड़ा व्यापारी समुदाय है जो खोजा khoja  कहलाते हैं। खोजा शब्द इसी ख्वाजा का अपभ्रंश है। यूरोप के यहूदियों की तरह खोजा लोग महान व्यापारी रहे हैं। पश्चिमी भारत के मुस्लिमों में खोजा कारोबारी होते हैं। खासकर पंजाब के खोजा सुन्नी कहे जाते हैं जिनके पुरखों में धर्मांतरित पंजाबी खत्री भी शामिल हैं। मोहम्मद अली जिन्ना भी खोजा समुदाय से ताल्लुक रखते थे और उनके पुरखे भी पंजाब के खत्री khatri थे। गुजरात और मुंबई के खोजा व्यवसायी शिया समुदाय के हैं और इस्माइली धर्मगुरु आग़ाखान को मानते हैं।
बादशाहों-सुल्तानों के दौर में रनिवास अर्थात हरम के मुखिया की पद को ख्वाजासरा khwajasara कहा जाता था। तुर्कों ने यह परंपरा चलाई थी कि हरम का मुखिया कोई किन्नर ही होगा। यह किन्नर भी किसी ऐसे गुलाम को बनाया जाता था जो राज्य शासन में प्रभावी हो। किसी किन्नर को ख्वाजासरा का रुतबा देकर बादशाह बेफिक्र हो जाते थे। कई बार बदला लेने के लिए भी दरबारी अपने बीच के किसी व्यक्ति को ख्वाजासरा बनाने की सिफारिश कर देते थे। जाहिर है रनिवास की चौकसी संभालने से पहले उसका बंन्ध्याकरण किया जाता था और यही दरबारियों का मक़सद भी होता था।  इस प्रवृत्ति को लेकर समाज में काफी हंसी-ठिठोली होती थी। मध्यकालीन सूफी कथाओं का प्रसिद्ध नायक मुल्ला

नुसरत फतेह अली खां

नसरुद्दीन, जिसे खोजा नसरुद्दीन के नाम से भी जाना जाता है, के किस्सों में इसका दिलचस्प चित्रण है। खोजा नसरुद्दीन को भी बुखारा के बादशाह का कोप भाजन बनना पड़ा था और उसे वहां के हरम का ख्वाजासरा नियुक्त किया गया था।
भारत में सूफियों के सम्प्रदायों में सर्वाधिक लोकप्रिय अगर कोई सम्प्रदाय हुआ है तो वह चिश्तिया सम्प्रदाय है। इसकी वजह उसके आचार-व्यवहार रहे हैं। चिश्ती सूफी पंथ की विशेषताओं में पवित्र सादा जीवन, धर्म को लेकर उदार दृष्टिकोण, नामोच्चार अर्थात जप आदि रहे हैं। डॉ प्रभा श्रीनिवासुलु/डॉ गुलनाज़ तंवर लिखित सूफीवाद पुस्तक में चिश्तियों के भारत में लोकप्रिय होने के तीन कारण गिनाए गए हैं। पहला चिश्ती संत भारत के जनजीवन और रीति-नीति से अच्छी तरह परिचित हो चुके थे। दूसरा इसके प्रमुख गुरुओं का असंदिग्ध महान व्यक्तित्व और तीसरा संगीत को अत्यधिक महत्व। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती(1141-1230) को चिश्तिया सम्प्रदाय का प्रवर्तक भी माना जाता है। हालांकि चिश्तिया पंथ उनसे पहले शुरु हो चुका था। अफ़गानिस्तान के चिश्त कस्बे से चिश्तिया पंथ का नाम शुरू हुआ है। नवीं सदी के उत्तरार्ध में सीरिया के दमिश्क से अबु इशाक शामी नाम के सूफी संत ने अफ़गानिस्तान के चिश्त कस्बे को अपना मुकाम बनाया जहां वे ख्वाजा अबु इशाक शामी चिश्ती कहलाए। 940 ईस्वी में उनका देहांत हुआ। उन्हें ही चिश्तिया पंथ का प्रवर्तक माना जाता है। इस पंथ को आगे ले जाने में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का बड़ा योगदान रहा है जिन्हें दुनियाभर में गरीबनवाज़ के नाम से भी जाना जाता है। उनके अलावा ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, शेख़ फरीदुद्दीन गंजशंकर, शेख़ निज़ामुद्दीन औलिया आदि प्रमुख चिश्ती सूफी हुए हैं।

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8 कमेंट्स:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

ख्वाजा,ख्वाजाह, खोजा ,ख्वाजासरा KA ANTR SMJH AA GAYA DHNYBAAD

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत ही सुंदर जानकारी। एक इतिहास नमूदार हो गया है।

ताऊ रामपुरिया said...

हमेशा की तरह नायाब जानकारी.

रामराम.

Himanshu Pandey said...

खोजा नसरुद्दीन के बारे में जान कर अच्छा लग रहा है. बड़ी दिलचस्प कथायें हैं नसरुद्दीन कीं.

नितिन | Nitin Vyas said...

दिलचस्प जानकारी!

रंजना said...

आह्हा !! आनंद आ गया...जितना सुंदर वर्णन उसपर मन को छूटा सुंदर कलाम..सूफी पंथ मेरे मन के बड़ा ही निकट है,इसलिए यह विवरण विशेष रूप से आनंददाई लगा...
ऐसे भी जहाँ महान संतों की पुण्यभूमि अवस्थित होती है,वहां जाने पर जो अनुभूति होती है,उसे शब्द दे पाना असंभव है.
इस सुंदर वर्णन के लिए बहुत बहुत आभार आपका .

दिगम्बर नासवा said...

खूबसूरत जानकारी..........
भारत तो सूफियों, दरवेशों और संतों की नगरी है और ये विषय सब को भाता है.
आपकी व्याख्या सचमुच लाजवाब होती है. शुक्रिया ज्ञान बांटने का

pallavi trivedi said...

खोजा और ख्वाजा का भी सम्बन्ध हो सकता है....ये तो सोचा ही नही था!

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